शिक्षामित्र समायोजन रद्द करने का मामला ; प्रभावित होंगे कई सरकारी मिशन और कार्यक्रम, अहम जिम्मेदारियाँ निभा रहे थे शिक्षामित्र, स्कूलों में अब शिक्षकों का और टोटा

             प्रभावित होंगे सरकारी मिशन, कई अहम जिम्मेदारियाँ निभा रहे थे शिक्षामित्र, समायोजन निरस्त होने के बाद  कैसे सरकारी जिम्मेदारी का निर्वाह करेंगे यह बड़ा प्रश्न बना
             शिक्षा मित्रों के समायोजन मुद्दे पर हाईकोर्ट में छह दिनों तक चली सुनवाई के दौरान राज्य सरकार कोई ठोस तर्क न रख सकी। शिक्षा मित्रों की तरफ से कई बड़े वकील भी बहस में आए लेकिन वह भी सरकार के पक्ष को मजबूती न दे सके। नतीजा सरकार की किरकिरी के रूप में सामने आया।
              दोनों पक्षों की ओर से बहस करने को अधिवक्ताओं की फौज नजर आती रही। राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि प्रदेश में प्रशिक्षित अध्यापकों की कमी के चलते बच्चों को शिक्षा देने के लिए सरकार ने 16 वर्ष से कार्यरत शिक्षा मित्रों का समायोजन किया है। अपर महाधिवक्ता सीबी यादव का यह भी कहना था कि शिक्षा मित्र भी अध्यापक हैं।                  इनका चयन वैधानिक संस्था ग्राम शिक्षा समिति द्वारा किया गया है। अध्यापकों की कमी के चलते सरकार ने नियमानुसार समायोजन करने का निर्णय लिया है। इन्हें दूरस्थ शिक्षा से प्रशिक्षित भी किया गया है।
                एनसीटीई के अधिवक्ता रिजवान अली अख्तर का कहना था कि शिक्षा मित्रों को प्रशिक्षण देने का अनुमोदन विधि सम्मत है। 23 अगस्त, 2010 की एनसीटीई की अधिसूचना सही है। उन्होंने साफ कहा कि रेग्यूलेशन बनाने का अधिकार केंद्र सरकार को है। शिक्षा मित्रों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता आरके ओझा, एचआर मिश्र ने भी बहस की। दूसरी ओर याची की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे, बीके सिंह अरविंद कुमार श्रीवास्तव व कई अन्य अधिवक्ताओं ने बहस की। उनका कहना था कि शिक्षा मित्रों की नियुक्ति मनमाने तौर पर बिना आरक्षण कानून का पालन किए की गई है।
              ऐसे में इनका समायोजन अनुच्छेद 14 व 16 के विपरीत है। साथ ही ये न्यूनतम योग्यता नहीं रखते। याचियों की ओर से मुख्य जोर इस बात पर दिया गया कि राज्य को केंद्रीय नियमावली में परिवर्तन का अधिकार नहीं है।
कई बड़े अधिवक्ता भी मजबूती न दे सके सरकार के फैसले को
                बिना मांझी के नैया सागर की लहरों के थपेड़े सहते डूब जाती है। ऐसा ही कुछ हाल सरकारी महकमे के कार्यो का होना तय है। शिक्षामित्रों के हवाले पल्स पोलियो अभियान, लेखपाल परीक्षा, बीएलओ, समाजवादी पेंशन योजना सर्वे समेत कई कार्य थे। समायोजन निरस्त होने के बाद न तो यह शिक्षामित्र रहे न तो सहायक अध्यापक ऐसे में कैसे सरकारी जिम्मेदारी का निर्वाह करेंगे यह बड़ा प्रश्न बना हुआ है।
               प्रदेश के बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में दो लाख 74 हजार शिक्षकों की तैनाती है, जिसमें एक लाख 72 हजार शिक्षा मित्र हैं। यह वह शिक्षा मित्र है जो दूरस्थ विधि से दो वर्षीय प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश उप महामंत्री रमेश मिश्र कहते हैं कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद शिक्षामित्रों का भविष्य अधर में है।                 पहले से ही शिक्षकों की कमी से जूझ रहे परिषदीय स्कूलों में अब शिक्षकों का टोटा हो जाएगा। सरकार की ओर से अदालतों में उसका पक्ष मजबूती से नहीं रखा जा रहा है। इसमें सुधार की जरूरत है। सरकार को अपने विधि विशेषज्ञों की टीम और सक्षम बनाने की जरूरत है। विधि सलाहकारों की समीक्षा भी करनी चाहिए।  -वीसी मिश्र, पूर्व महाधिवक्ता, राज्य सरकार

Comments

Popular posts from this blog

15 हजार सहायक अध्यापकों की नियुक्ति की प्रक्रिया कुछ आगे बढ़ी ; एनआइसी से मिली सूची, अब पड़ताल जारी

लोक सेवा आयोग में कई पदों पर भर्ती, पढ़ें पूरा नोटिफिकेशन और करें आवेदन

रेलवे में 10वीं पास के लिए सरकारी नौकरी का सुनहरा मौका, 2792 पदों के लिए अब 4 अप्रैल, 2020 तक करें आवेदन

कैंटोनमेंट बोर्ड में सफाईवाला के 73 पदों पर रिक्तियां : आठवीं पास उम्मीदवारों के लिए मौका

देश का सबसे बड़ा शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम ; मार्च 2019 तक 11 लाख से ज्यादा अप्रशिक्षित शिक्षकों को दी जाएगी ट्रेनिंग

राज्य सभा में अनेक पदों पर भर्तियां, 10वीं उत्तीर्ण 19 फरवरी 2020 तक करें आवेदन

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय (HP High Court) में Driver के 07 पदों पर भर्तियाँ, 26 नवंबर 2019 तक करें आवेदन

उत्तर प्रदेश में बिना परीक्षा के पास होंगे कक्षा 6 से 9 और 11वीं के विद्यार्थी, शासनादेश जारी और 15 अप्रैल के बाद शुरू होगा बोर्ड परीक्षा का मूल्यांकन

SHIKSHAMITRA SAMAYOJAN MAMLA ; समायोजन रद्द होने के पश्चात शिक्षामित्रो केआंदोलन को सरकार अपनी राजनीतिक सूझ बूझ का परिचय देते हुए समाप्त कराने मे सफल