शिक्षा मित्रों को टीईटी से छूट के तथाकथित लैटर की वास्तविकता

                 इस लैटर को शिक्षा मित्रों के लिए टीईटी से छूट का लैटर कह के प्रचारित किया जा रहा है। समस्या है अंग्रेजी। एक तो समझ में आती नहीं और ऊपर से जितनी समझ आती है उसको शब्दों में बयान करना मुश्किल हो जाता है।
पैराग्राफ 3 में लिखा है कि :
'As regards qualifying TET, it may be stated that the teachers who were appointed prior to 25th
August, 2010 and have been in continuous service, it will not be applicable to them.'
                 जहां तक टीईटी पास करने
की बात है, 25 अगस्त 2010 से पूर्व नियुक्त
शिक्षक जो 'लगातार सेवा' में रहे, उन पर टीईटी की बाध्यता लागू नहीं होगी।
                 It is also added that the MHRD Govt. of India vide their letter dated 8.11.2010 addressed to the the state governments and its clarified that the condition of passing TET will not be relaxed by the Central government since TET is one of the essential component of the minimum qualification, therefore it should be adhered to.
                  [यह भी जोड़ा जाता है कि मानव संशाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार ने अपने 8.11.2010 के पत्र द्वारा समस्त
राज्य सरकारों व केंद्र शाषित प्रदेशों को अवगत कराया था कि केंद्र सरकार टीईटी उत्तीर्ण करने की बाध्यता से छूट नहीं देगी
क्योंकि टीईटी न्यूनतम योग्यता का आवश्यक हिस्सा है इसलिये टीईटी पास
करने की बाध्यता रखनी चाहिए।]
अंत में सरकार और शिक्षा मित्रों के मुंह पर पंच मारते हुए कहा :
                    'Further it is clarified that the correctness of the mode and nature of recruitment of such untrained teachers (Shiksha Mitras), it is solely theresponsibility of State Government'
                     [और यह साफ़ किया जाता है कि इन अप्रशिक्षित शिक्षकों (शिक्षा मित्रों) की नियुक्ति को ठीक प्रकार एवं तरीके से करने की जिम्मेदारी केवल और केवल राज्य सरकार की है।]
                      उपरोक्त पैराग्राफ का सार :
केवल उन शिक्षकों को छूट है जो 25/08/10 से पूर्व पूर्णकालिक पद पर नियुक्त हुए थे। शिक्षा मित्र संविदा कर्मी मात्र हैं जिनकी नियुक्ति 11 माह की संविदा पर हुई थी। इनकी नियुक्ति प्रत्येक वर्ष के जून माह में समाप्त हो जाती है तथा जुलाई माह से दोबारा नई नियुक्ति होती है। अर्थात यह कभी 'लगातार सेवा' में नहीं रहे। 14 वर्ष के अपने कार्यकाल में 14 बार इनकी सेवा समाप्त हुई तथा 14 ही बार इनकी नई नियुक्ति हुई। इसलिए यह छूट इन लोगों को दी ही नहीं जा सकती है।
                     अब आप यह सोचिये कि जब मुझे जैसा सामान्य विवेक वाला व्यक्ति इस बात को समझ व समझा रहा है तो फिर सुप्रीम कोर्ट के महाज्ञानी न्यायाधीश महोदय तथा ज्ञानी अधिवक्ताओं द्वारा इस बात का कैसा पोस्ट मॉर्टम किया जाएगा।
                     जो व्यक्ति धन का लालची है उसे पैसा देकर, घमंडी या अभिमानी व्यक्ति को पैर छूकर, विद्वान को सत्य बात कह कर तथा किसी मुर्ख को उसके मन की बात कह कर बस में किया जा सकता है। राज्य सरकार अब तक शिक्षा मित्रों के मन की बात उनसे कहती आई जिससे वह उसके बस में हो गए और अब एनसीटीई की समझ में भी यह बात आ चुकी है जिस कारण उसने भी इनके मन की बात इनसे कह दी लेकिन वह भी जानती है कि सुप्रीम कोर्ट में इस बात को कोई अर्थ नहीं होगा क्योंकि यह तो सभी को पता था कि 25 अगस्त 2010 से पूर्व नियुक्त 'पूर्णकालिक शिक्षकों' के लिए टीईटी पास करने की बाध्यता नहीं है।
                      बात तो यहाँ आकर फसती है कि यह लोग पूर्णकालिक हैं अथवा नहीं? इसका व्याख्यान माननीय मुख्य न्यायाधीश इलाहाबाद उच्च न्यायालय श्री धनंजय यशवन्त चन्द्रचूर्ण ने अपने 12 सितम्बर 2015 के आदेश में बहुत ही बारीकी से किया है तथा शिक्षा मित्रों को संविदा कर्मी मात्र माना है जो स्वेच्छा से कार्य कर रहा था।
                       यदि यह ही वह छूट का लैटर है तो शिक्षा मित्रों को अब कोई बचा नहीं सकता सुप्रीम कोर्ट में।


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