शिक्षामित्रों के शिक्षक पद पर समायोजन में टीईटी का प्रतिबंध अनुचित ; शिक्षामित्रों का ज्वलंत प्रकरण पर विशेष समीक्षा

BJP *जिलाध्यक्ष संतोष सिंह* ने प्रधानमंत्री व मानव संसाधन विकास मंत्री से की मांग
शिक्षा के अधिकार कानून की धारा 23 के तहत केंद्र सरकार के अधिकारों का दिया हवाला
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से भी पुर्नविचार का किया अनुरोध
चित्र- संतोष सिंह
प्रेम अवस्थी
अभिषेक मिश्रा
बाराबंकी:- भारतीय जनता पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष अधिवक्ता संतोष सिंह प्रदेश के शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक पद पर समायोजन बहाल किए जाने के लिए शासन-सत्ता के साथ ही न्यायिक लड़ाई के लिए आगे आए हैं। उन्होंने ग्रामीण शिक्षा को सुधारने में शिक्षामित्रों की भूमिका को महत्वपूर्ण तथ्यों सहित उजागर करते हुए देश के प्रधानमंत्री व मानव संसाधन विकास मंत्री के साथ ही प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र भेजकर समायोजन बहाली की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से पुर्नविचार का अनुरोध किया है। संतोष सिंह का कहना है कि उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्रो का समायोजन सहायक अध्यापक पद पर बहाल करने के लिए केंद्र सरकार शिक्षा का अधिकार कानून की धारा 23 के तहत अधिसूचना जारी करे। इससे न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश के शिक्षामित्रों का भला होगा और अनिश्चिता समाप्त होगी।
अटलजी ने किया था शिक्षामित्रों का प्राविधान:- शिक्षामित्रो की तैनाती सर्व शिक्षा अभियान के तहत वर्ष 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी तथा मानव संसाधन विकास मंत्री श्री मुरली मनोहर जोशी ने उ0प्र0 सहित सम्पूर्ण देश में शिक्षकों की कमी से बन्द पड़े हजारो विद्यालयों का संचालन करने के लिये किया था।
डॉयट से किया प्रशिक्षण:- उस समय परिषदीय विद्यालयो के सहायक अध्यापको की शैक्षिक योग्यता इण्टर मीडिएट तथा प्रशिक्षण योग्यता मात्र बी0टी0सी0 थी। ऐसे में योग्यता शिक्षामित्रो के चयन की अर्हता इंटर मीडिएट रखी गयी थी। तब देश में बी0टी0सी0 प्रशिक्षण संस्थानो की कमी थी। ऐसे में शिक्षामित्रों को विशिष्ट बीटीसी की तरह एक माह का आवासीय प्रशिक्षण जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों में प्रशिक्षण कराने के बाद प्राथमिक विद्यालय में तैनात दी गयी थी। ऐसे में इन्हें अप्रशिक्षित भी नहीं का जा सकता। सन् 2001 में सहायक अध्यापक पद की शैक्षिक योग्यता स्नातक व बी0टी0सी0 निर्धारित की गयी।
50 फीसदी थी चयन के समय स्नातक:- सन् 1999 में शिक्षामित्रों के चयन ग्रामसभा के इण्टरमीडिएट
परीक्षा में सर्वांधिक अंक प्राप्त के आधार पर किए जाने का प्राविधान किया गया। हालांकि चयन के समय ही करीब उस समय भी 50 प्रतिशत से अधिक अभ्यर्थी स्नातक योग्यता वाले थे।
*बंद स्कूलों के खुले ताले*- शिक्षामित्रो की तैनाती के उपरान्त तमाम स्कूलाें के ताले खुले और ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी बन शिक्षामित्रों की भूमिका का निर्वाहन
सामने आया।
शिक्षा का अधिकारी कानून:- वर्ष 2009 में शिक्षा का अधिकार कानून
लागू हुआ जिसके तहत व्यवस्था हुई कि कोई भी अप्रशिक्षित अध्यापक
विद्यालयों में शिक्षण कार्य नहीं करेगा। शिक्षा के अधिकार कानून की धारा-23 में उल्लेख किया गया है कि जिसके पास केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचना द्वारा प्राधिकृत अधिकारी द्वारा यथा अधिकथित ऐसी न्यूनतम अर्हताएं है। शिक्षक की नियुक्ति के लिये पात्र होगा।
केंद्र की अधिसूचना पर हुई थी तैनाती:- शिक्षामित्रों की तैनाती केन्द्र सरकार की अधिसूचना के तहत हुई थी जिसका संज्ञान लेकर शिक्षा के अधिकार कानून की धारा-23 की उप धारा (2) में कहा गया है कि जहां किसी राज्य में अध्यापक शिक्षा पाठ्यक्रम या उसमें प्रशिक्षण प्रदान करने वाली पर्याप्त संस्थाये नहीं है। या उप धारा (1) के अधीन तथा अधिकथित न्यूनतम अर्हतायें रखने वाले शिक्षक पर्याप्त संख्या में नहीं है। वहां केन्द्रीय सरकार यदि वह आवश्यक समझे अधिसूचना शिक्षक के रूप में नियुक्त के लिये अपेक्षित न्यूनतम अर्हताआें को 5 वर्ष से अनाधिक की ऐसी अवधि के लिए
शिथिल कर सकेगी! जिससे अधिसूचना में विनिदृष्ट की जाए। परन्तु ऐसा कोई शिक्षक जिसके पास इस अधिनियम के प्रारम्भ पर उप धारा (1) के अधीन यथा अधिकथित न्यूनतम अर्हतायें नहीं है। पांच वर्ष की अवधि के भीतर ऐसी न्यूनतम अर्हतायें अर्जित करेगा। उप धारा (3) में शिक्षक को संदेय वेतन व भत्ते तथा उसकी सेवा के निबन्धन और शर्तें वे होगी जो विहित की जाय। शिक्षामित्र शिक्षकों के समान ही शिक्षण कार्य करते थे। ऐसे में उन्हें शिक्षक का दर्जा देना कतई गलत नहीं हैं।
*महिला स्वालंबन का आधार*:- शिक्षा
के अधिकार कानून लागू होने के बाद राज्य सरकार ने स्नातक शैक्षिक योग्यता वाले एक लाख बहत्तर हजार शिक्षामित्रो का उत्तर प्रदेश में सेवारत दूरस्थ शिक्षा से बी0टी0सी0 प्रशिक्षण कराया, जिसमें आधी संख्या महिलाओं की है। बाराबंकी जिले के 3500 शिक्षामित्रों में आधी महिलाएं हैं। एक प्रकार से ग्रामीण महिलाआें के स्वावलम्बन एवं सशक्तीकरण का आधार भी यह योजना बनी। सहायक अध्यापक पद पर जनपद बाराबंकी में 3500 शिक्षामित्राें में से करीब 800 शिक्षामित्र अपने विद्यालयाें के इंचार्ज के रूप में वित्तीय दायित्वों का भी निर्वहन बखूबी कर रहे हैं।
*बीएड डिग्री धारकों की स्थिति*:- बी.एड. की योग्यता जो इण्टर कालेजो में पढ़ाने की है। इनकी नियुक्ति भी मानको में शिथिलता देकर छः माह का विशिष्ट बी0टी0सी0 का प्रशिक्षण कराकर तीन चरणों में प्राथमिक विद्यालयों में तैनात किया गया है। जिसके लिये राज्य की कैबिनट ने प्रस्ताव पास कर केन्द्र सरफार से अनुमोदन कराया था।  24 अगस्त 2010 को शिक्षक पात्रता परीक्षा का प्राविधान लागू कर दिया गया शिक्षक पात्रता परीक्षा (टी0ई0टी0) पास करने वाले बी.एड. डिग्रीधारको ने द्वेषपूर्ण भावना ले शिक्षा मित्रों के समायोजन मामले को कोर्ट मे चुनौती दे दी थी, जिसपर सुनवाई करते हुये पहले हाईकोर्ट अब सुप्रीम कोर्ट ने अध्यापक बने शिक्षामित्रों का समायोजन निरस्त कर दिया जिससे 17 बर्षो से शिक्षण कार्य कर रहे शिक्षामित्रों के सामने अब रोजी रोटी का संकट खडे हो गया है!
जैसा कि शिक्षामित्र शिक्षण कार्य के साथ साथ शासन प्रशासन के सभी कार्य जैसे पल्स पोलियो, बीएलओ, जनगणना, आर्थिक गणना, जाति गणना, पशु गणना, आधार कार्ड लिंक, बाल गणना, चुनाव ड्यूटी सहित अन्य सभी कार्यों को करने की जिम्मेदारी का निर्वाहन करे आये है! लेकिन दुर्भाग्य है शिक्षा मित्रों को अयोग्य साबित करने मे समाज व न्यायालय को 17 बर्ष लगे गये, जब उन्हें 3500 मिलते थे तो वह योग्य थे, और जब उनको अध्यापक पद समायोजित कर दिया गया और 35000 वेतन मिलने लगा वह अयोग्य हो गये!
उक्त समीक्षा के साथ
जय हिंद
*प्रदीप पाल*
*जिला मीडिया प्रभारी एवं प्रवक्ता*
*संयुक्त संघर्ष समिति*
*जनपद-इलाहाबाद*






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