Up के शिक्षा मित्र की व्यथा ; न्याय की उम्मीद में खड़ा शिक्षा मित्र !
मैं आप के ही आँचल मे दूर जंगल मे एक पिछडे हुए गाँव का आम शिक्षामित्र अपने दर्द की दास्तान आपके समक्ष रख रहा हूँ l मै चाहता हूँ कि आप मेरी व मेरे परिवार की बर्बादी से होने वाली बरबादी के गवाह आप सब भी बनो l बाद में आप किसी के बहकावे मे मुझे दोषी ना ठहरा सको l
मैं अपने समय का अपने गांव का टॉप मेरिट हूँ l गाँव मे शिक्षामित्र की वेकेंसी आयी तो बेरोजगारी के कारण आवेदन कर दिया l टॉप मेरिट होने के कारण विरोधियों के ना चाहते हुए भी मै चयनित होकर ट्रैनिंग प्राप्त कर स्कूल मे पढाने लगा l एक मजदूर को उस समय 80 रुपए मिलते थे मूझे75 रुपए मिलते थे तो मैने उस मजदूर से भी अधिक काम स्कूल मे करने का प्रयास किया l विरोधी तलाश मे थे कि कब मौका मिले और इसको हटाया जाये l लेकिन मेरे ईमानदारी से काम करने के कारण किसी को मौका नही मिला l अपनी ड्यूटी के साथ साथ विभागीय अनुमति लेकर प्राईवेट स्नातक की योग्यता भी प्राप्त कर ली l सरकार के किसी भी काम (जनगणना ,बाल गणना ,पशु गणना,पोलियो , चुनाव , मतगणना आदि )पूर्ण किये l सभी को अपने कार्यों से खुश किया, मगर एक मजदूर से भी बदतर जिंदगी जीता रहा क्योंकि जब अनपढ़ मजदूर 400 ₹ ले रहा था मगर मुझ स्नातक को केवल 116 रुपये मिल रहे थे l
मुझे एक विश्वास था कि एक न एक दिन हमे भी समान कार्य का समान वेतन मिलेगा l RTE 2009 के तहत हमे सरकार ने 2 साल की बी टी सी की ट्रैनिंग करवा दी गयी l उस समय की सरकार ने 14 सालो के संतोषजनक कार्य को देखकर हमे सहायक अध्यापक के रूप में समायोजित कर दिया l क्योंकि हम काम शिक्षामित्र रहते हुए भी वही कर रहे थे जो सहायक अध्यापक बनने के बाद करने वाले थे । इसी बीच कुछ बी ऐड डिग्री वालो ने हमारे समायोजन को चुनौती दे दी l केवल टी ई टी परीक्षा की कमी के चलते , व कोर्ट ने अपनी निजी रंजिश के चलते हमे इंटर पास अयोग्य करार दे दिया , हमे अपने पक्ष को रखने का मौका नही दियाl जहाँ संगीन अपराध वाले मुकदमे सालो चलते रहते हैं उस कोर्ट ने स्वार्थ के कारण शनिवार 12 सितम्बर 2015 को हमारे स्वाभिमान पर इतनी गहरी चोट मारी की अभी तक हमारे 62 साथी इस सदमें से शहीद हो गये l ये बरबादी मुझ अकेले की नही हैं पूरे प्रदेश मे 172000 शिक्षामित्र, इस घिनौने फैसले से आहत हुए हैं l जिस देश मे झगडे मे मरने वाले एक आदमी को 20 लाख रुपये देकर नेता और मीडिया वाह वाही लूटता हैं सम्मानित लोग अपने पुरुस्कार लौटा देते हैं l परन्तु हमारे लिए इस समाज की कोई सिम्पति नही आई जबकि हम भी आपके इस समाज का हिस्सा हैं l
हमने 15 साल मे आपके समाज के गरीब बच्चो को पढाया है क्या ये दोष है हमारा l एक भ्रष्ट जज के अयोग्य कहने से आपने भी हमको अयोग्य मान लिया l अब अंत मे एक ही बात है कि अगर हमको बिना जुर्म के अपराधी बना दिया , सिलसिला यहीं नहीं रुका हम अपने न्याय की गुहार लेकर भारत के सर्वोच्च न्यायालय की शरण में पहुंचे न्यायालय में शिक्षामित्र के योग्यता को साबित करने वाले हर एक तत्थों को हर एक दलीलों को सामने रखा, माननीय उच्चतम न्यायालय में जब केस पहुंचा वहां 7 दिसंबर 2015 को हमें स्टे दे दिया गया। हमारे लिए एक उम्मीद की किरण जागी स्टे के दौरान हमारी सेवाओं को सवेतन बाहाल कर दिया गया, लगभग डेढ़ साल मुकदमा माननीय उच्चतम न्यायालय में चला भारत के टॉप सीनियर अधिवक्ताओं ने अपनी दलीलें शिक्षामित्रों के पक्ष में पेश की सभी की दलीलें सुनते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय ने 25 जुलाई 2017 को शिक्षामित्र केस का फैसला सुना दिया, हम माननीय उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हैं परंतु माननीय उच्चतम न्यायालय ने शिक्षामित्र केस में जो फैसला सुनाया उस फैसले के दौरान कुछ ऐसी बातें हैं जो सभी को बताना जरूरी है माननीय उच्चतम न्यायालय के फैसले में शिक्षा मित्रों द्वारा किए गए वकीलों की किसी भी दलील का विवरण नहीं है माननीय उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि शिक्षा मित्र गुणवत्तापरक शिक्षा देने के योग्य नहीं है उन्होंने माननीय उच्च न्यायालय के फैसले को सही ठहराते हुए 25 जुलाई से शिक्षामित्रों का समायोजन पूर्णतया रद्द कर दिया और फैसला सरकार के ऊपर छोड़ दिया कि यदि सरकार चाहे तो इन्हें पुनः शिक्षा मित्र के रूप में मानदेय पर रख सकती है, माननीय उच्चतम न्यायालय से मेरी यह प्रार्थना है कि मुझे इस बात से अवगत करा दें यदि मैं अयोग्य शिक्षक हूं तो फिर मैं जिन बच्चों को शिक्षक रहते हुए शिक्षा दे रहा था उन्ही बच्चों को मैं शिक्षा मित्र होने के बाद गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कैसे दे सकता हूं ।,
मेरी माननीय उच्चतम न्यायालय से प्रार्थना है की एक और ऐसा आदेश कर दें जिसमें साफ लिखा हो कि शिक्षामित्र अयोग्य हैं उन्होंने शिक्षामित्र रहते हुए 17 साल जिन बच्चों को पढ़ाया है उन सारे बच्चों का भविष्य शिक्षामित्रों ने बर्बाद किया है इसलिए सभी 172000 शिक्षामित्रों को फांसी की सजा सुनाई जाती है ।
देशवासियों मैंने अपने जीवन के 17 साल बेसिक शिक्षा को दिए इस आस में लगा रहा कि 1 दिन अच्छे दिन आएंगे और हमें सरकार और माननीय उच्चतम न्यायालय से न्याय मिलेगा परंतु 17 साल बाद हमें माननीय उच्चतम न्यायालय के फैसले ने उसी जगह लाकर खड़ा कर दिया जहां 17 साल पहले थे, यदि शिक्षक पात्रता परीक्षा ही पास करने की बात तो सभी शिक्षामित्र आज शिक्षक पात्रता परीक्षा पास करने के लिए तैयार हैं तो क्या माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा सभी शिक्षा मित्रों को शिक्षक पात्रता परीक्षा पास करने का कुछ समय दिया जाना चाहिए था परंतु न्यायालय के आर्डर के अनुसार नहीं दिया गया, हमसे कहा गया कि आप शिक्षक पात्रता पास करिए और सरकार द्वारा निकाली जाने वाली नई भर्तियों में पुनः आवेदन कीजिए मैं सभी समाज के वरिष्ठ नागरिकों से पूछना चाहता हूं कि हमने 20 -25 साल पहले हाई स्कूल और इंटर किया है क्या हमारी मेरिट आज पास करने वाले युवा के बराबर हो सकती है फिर हमारे साथ ऐसा अन्याय क्यों, हमें नहीं लगता कि अब हमें कहीं से न्याय मिलेगा अब सिर्फ 172000 शिक्षामित्र परिवारों के सामने एक ही रास्ता बचा है कि सभी अपने परिवारों के साथ अपनी जीवन लीला खत्म कर लें, भारत के सभी माननीय न्यायालय मुझे क्षमा करें मेरा आप सभी न्यायालयों से विश्वास उठ चुका है। अब सिर्फ अगर किसी को शिक्षा मित्रों के साथ न्याय करना है तो वह भारत की जनता है और जनता से कोई बड़ा नही है अगर मैं अपराधी हूँ तो आप भी मुझे सजा दीजिये । अगर मैं अपराधी नही हूँ तो मैं न्याय की उम्मीद में आपके दरवाजे पर खड़ा हूँ ।
अगर आप मेरे इस दुःख में मेरे साथ हैं और मेरे विचारों से सहमत हैं तो मेरी इस पोस्ट को अपने समर्थन के रूप में अधिक से अधिक शेयर करें और अपने कमेंट करें ।
आपका सदैव ऋणी रहूंगा ।
न्याय की उम्मीद में खड़ा शिक्षा मित्र !
Keywords ; tet,shikshamitra,samayojan,teachers,upgovt
मैं अपने समय का अपने गांव का टॉप मेरिट हूँ l गाँव मे शिक्षामित्र की वेकेंसी आयी तो बेरोजगारी के कारण आवेदन कर दिया l टॉप मेरिट होने के कारण विरोधियों के ना चाहते हुए भी मै चयनित होकर ट्रैनिंग प्राप्त कर स्कूल मे पढाने लगा l एक मजदूर को उस समय 80 रुपए मिलते थे मूझे75 रुपए मिलते थे तो मैने उस मजदूर से भी अधिक काम स्कूल मे करने का प्रयास किया l विरोधी तलाश मे थे कि कब मौका मिले और इसको हटाया जाये l लेकिन मेरे ईमानदारी से काम करने के कारण किसी को मौका नही मिला l अपनी ड्यूटी के साथ साथ विभागीय अनुमति लेकर प्राईवेट स्नातक की योग्यता भी प्राप्त कर ली l सरकार के किसी भी काम (जनगणना ,बाल गणना ,पशु गणना,पोलियो , चुनाव , मतगणना आदि )पूर्ण किये l सभी को अपने कार्यों से खुश किया, मगर एक मजदूर से भी बदतर जिंदगी जीता रहा क्योंकि जब अनपढ़ मजदूर 400 ₹ ले रहा था मगर मुझ स्नातक को केवल 116 रुपये मिल रहे थे l
मुझे एक विश्वास था कि एक न एक दिन हमे भी समान कार्य का समान वेतन मिलेगा l RTE 2009 के तहत हमे सरकार ने 2 साल की बी टी सी की ट्रैनिंग करवा दी गयी l उस समय की सरकार ने 14 सालो के संतोषजनक कार्य को देखकर हमे सहायक अध्यापक के रूप में समायोजित कर दिया l क्योंकि हम काम शिक्षामित्र रहते हुए भी वही कर रहे थे जो सहायक अध्यापक बनने के बाद करने वाले थे । इसी बीच कुछ बी ऐड डिग्री वालो ने हमारे समायोजन को चुनौती दे दी l केवल टी ई टी परीक्षा की कमी के चलते , व कोर्ट ने अपनी निजी रंजिश के चलते हमे इंटर पास अयोग्य करार दे दिया , हमे अपने पक्ष को रखने का मौका नही दियाl जहाँ संगीन अपराध वाले मुकदमे सालो चलते रहते हैं उस कोर्ट ने स्वार्थ के कारण शनिवार 12 सितम्बर 2015 को हमारे स्वाभिमान पर इतनी गहरी चोट मारी की अभी तक हमारे 62 साथी इस सदमें से शहीद हो गये l ये बरबादी मुझ अकेले की नही हैं पूरे प्रदेश मे 172000 शिक्षामित्र, इस घिनौने फैसले से आहत हुए हैं l जिस देश मे झगडे मे मरने वाले एक आदमी को 20 लाख रुपये देकर नेता और मीडिया वाह वाही लूटता हैं सम्मानित लोग अपने पुरुस्कार लौटा देते हैं l परन्तु हमारे लिए इस समाज की कोई सिम्पति नही आई जबकि हम भी आपके इस समाज का हिस्सा हैं l
हमने 15 साल मे आपके समाज के गरीब बच्चो को पढाया है क्या ये दोष है हमारा l एक भ्रष्ट जज के अयोग्य कहने से आपने भी हमको अयोग्य मान लिया l अब अंत मे एक ही बात है कि अगर हमको बिना जुर्म के अपराधी बना दिया , सिलसिला यहीं नहीं रुका हम अपने न्याय की गुहार लेकर भारत के सर्वोच्च न्यायालय की शरण में पहुंचे न्यायालय में शिक्षामित्र के योग्यता को साबित करने वाले हर एक तत्थों को हर एक दलीलों को सामने रखा, माननीय उच्चतम न्यायालय में जब केस पहुंचा वहां 7 दिसंबर 2015 को हमें स्टे दे दिया गया। हमारे लिए एक उम्मीद की किरण जागी स्टे के दौरान हमारी सेवाओं को सवेतन बाहाल कर दिया गया, लगभग डेढ़ साल मुकदमा माननीय उच्चतम न्यायालय में चला भारत के टॉप सीनियर अधिवक्ताओं ने अपनी दलीलें शिक्षामित्रों के पक्ष में पेश की सभी की दलीलें सुनते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय ने 25 जुलाई 2017 को शिक्षामित्र केस का फैसला सुना दिया, हम माननीय उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हैं परंतु माननीय उच्चतम न्यायालय ने शिक्षामित्र केस में जो फैसला सुनाया उस फैसले के दौरान कुछ ऐसी बातें हैं जो सभी को बताना जरूरी है माननीय उच्चतम न्यायालय के फैसले में शिक्षा मित्रों द्वारा किए गए वकीलों की किसी भी दलील का विवरण नहीं है माननीय उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि शिक्षा मित्र गुणवत्तापरक शिक्षा देने के योग्य नहीं है उन्होंने माननीय उच्च न्यायालय के फैसले को सही ठहराते हुए 25 जुलाई से शिक्षामित्रों का समायोजन पूर्णतया रद्द कर दिया और फैसला सरकार के ऊपर छोड़ दिया कि यदि सरकार चाहे तो इन्हें पुनः शिक्षा मित्र के रूप में मानदेय पर रख सकती है, माननीय उच्चतम न्यायालय से मेरी यह प्रार्थना है कि मुझे इस बात से अवगत करा दें यदि मैं अयोग्य शिक्षक हूं तो फिर मैं जिन बच्चों को शिक्षक रहते हुए शिक्षा दे रहा था उन्ही बच्चों को मैं शिक्षा मित्र होने के बाद गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कैसे दे सकता हूं ।,
मेरी माननीय उच्चतम न्यायालय से प्रार्थना है की एक और ऐसा आदेश कर दें जिसमें साफ लिखा हो कि शिक्षामित्र अयोग्य हैं उन्होंने शिक्षामित्र रहते हुए 17 साल जिन बच्चों को पढ़ाया है उन सारे बच्चों का भविष्य शिक्षामित्रों ने बर्बाद किया है इसलिए सभी 172000 शिक्षामित्रों को फांसी की सजा सुनाई जाती है ।
देशवासियों मैंने अपने जीवन के 17 साल बेसिक शिक्षा को दिए इस आस में लगा रहा कि 1 दिन अच्छे दिन आएंगे और हमें सरकार और माननीय उच्चतम न्यायालय से न्याय मिलेगा परंतु 17 साल बाद हमें माननीय उच्चतम न्यायालय के फैसले ने उसी जगह लाकर खड़ा कर दिया जहां 17 साल पहले थे, यदि शिक्षक पात्रता परीक्षा ही पास करने की बात तो सभी शिक्षामित्र आज शिक्षक पात्रता परीक्षा पास करने के लिए तैयार हैं तो क्या माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा सभी शिक्षा मित्रों को शिक्षक पात्रता परीक्षा पास करने का कुछ समय दिया जाना चाहिए था परंतु न्यायालय के आर्डर के अनुसार नहीं दिया गया, हमसे कहा गया कि आप शिक्षक पात्रता पास करिए और सरकार द्वारा निकाली जाने वाली नई भर्तियों में पुनः आवेदन कीजिए मैं सभी समाज के वरिष्ठ नागरिकों से पूछना चाहता हूं कि हमने 20 -25 साल पहले हाई स्कूल और इंटर किया है क्या हमारी मेरिट आज पास करने वाले युवा के बराबर हो सकती है फिर हमारे साथ ऐसा अन्याय क्यों, हमें नहीं लगता कि अब हमें कहीं से न्याय मिलेगा अब सिर्फ 172000 शिक्षामित्र परिवारों के सामने एक ही रास्ता बचा है कि सभी अपने परिवारों के साथ अपनी जीवन लीला खत्म कर लें, भारत के सभी माननीय न्यायालय मुझे क्षमा करें मेरा आप सभी न्यायालयों से विश्वास उठ चुका है। अब सिर्फ अगर किसी को शिक्षा मित्रों के साथ न्याय करना है तो वह भारत की जनता है और जनता से कोई बड़ा नही है अगर मैं अपराधी हूँ तो आप भी मुझे सजा दीजिये । अगर मैं अपराधी नही हूँ तो मैं न्याय की उम्मीद में आपके दरवाजे पर खड़ा हूँ ।
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