गलत तरीके से नौकरी से निकालने या जबरन सेवानिवृत्ति देने पर नियोक्ता को उस अवधि का वेतन भी देना होगा ; सुप्रीम कोर्ट

                                                             सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर कर्मचारी की बर्खास्तगी या जबरन सेवानिवृत्ति अवैध पाई जाती है तो नियोक्ता को उस समय का वेतन भी कामगार को देना होगा, जिस दौरान वह बर्खास्त रहा। सुप्रीम कोर्ट का मत है कि कर्मचारी ने अपनी इच्छा से नौकरी नहीं छोड़ी, बल्कि उसे काम न करने के लिए मजबूर किया गया। अगर उसे बर्खास्त नहीं किया गया होता तो वह निश्चित रूप से अपनी सेवाएं अपने नियोक्ता को देता। इस तरह की परिस्थितियों पर काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धांत कर्मचारी पर लागू नहीं होता।
                                                              सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कई पुराने निर्णयों से हटकर है। शीर्ष अदालत के कई फैसले बर्खास्तगी को नाजायज ठहराने के बावजूद बैक वेजेस के पक्ष में नहीं थे। जस्टिस जगदीश सिंह केहर और रोहिंटन फली नरीमन की बेंच ने शोभा राम रतूड़ी के मामले में यह निर्णय दिया।
हरियाणा विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड ने कुरुक्षेत्र के रतूड़ी को 31 दिसंबर, 2002 को जबरन सेवानिवृत्त कर दिया था जबकि उनका रिटायरमेंट तीन साल बाद होना था। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने विद्युत निगम के आदेश को अवैध करार दिया था।
हाई कोर्ट ने उसकी नौकरी अनवरत जारी रखी तथा कहा कि उसे सेवानिवृत्ति के सभी लाभ दिए जाएं। लेकिन उन तीन वर्षो का वेतन न दिया जाए जिस अवधि में उसने काम नहीं किया। 
                                                               हाई कोर्ट की एकल पीठ ने यह निर्णय 14 सितंबर, 2010 को दिया था।
रतूड़ी ने एकल पीठ के फैसले को हाई कोर्ट की खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी। खंडपीठ ने 26 मई, 2011 को दिए निर्णय में याची को काई राहत नहीं दी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याची के तर्क से सहमति व्यक्त की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेवानिवृत्ति का आदेश अवैध करार दिए जाने के परिणामस्वरूप कर्मचारी को नौकरी के सभी लाभ दिए जाने चाहिए। गलती नियोक्ता की है कि उसने अपने कर्मचारी की सेवाओं का इस्तेमाल नहीं किया। अगर याची को नौकरी पर बरकरार रखा गया होता तो कोई ऐसा कारण नहीं है कि वह अपनी सेवाएं नियोक्ता को नहीं देता। इन परिस्थितियों में हरियाणा विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धांत लागू नहीं कर सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने एक जनवरी, 2003 से 31 दिसंबर, 2005 तक का तीन साल का वेतन कर्मचारी को देने का आदेश दिया। हरियाणा विद्युत निगम से कहा गया है कि वह तीन माह के अंदर सभी बकाया राशि का भुगतान करे। कर्मचारी के सेवानिवृत्ति लाभ की गणना भी दोबारा की जाए। 







Keywords ; teachers,jobs,govtjobs,supreme court

Comments

Popular posts from this blog

सीएसआईआर ( CSIR) में 19 परियोजना सहायक और अन्य पदों पर भर्तियाँ, चयन वॉक-इन-इंटरव्यू से

शिक्षा मित्रों और टेट के मुद्दे पर सुनवाई अब 27 जुलाई को

दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) में बस चालकों के अनेक पदों पर भर्तियां, 06 जून 2020 तक करें आवेदन

हेड कांस्टेबल के पदों पर कुल 73 रिक्तियां घोषित : करें ऑनलाइन आवेदन , अंतिम तारीख 23 अक्टूबर 2018

69000 शिक्षक भर्ती : प्रश्नों का विवाद बड़ा उलटफेर का बन सकता है कारण, सैकड़ों हो सकते हैं चयन सूची से बाहर

बीटीसी प्रवेश 2014-15 : 19 फीसद सीटें रह गयीं खाली,नौ बार हुई प्रवेश को लेकर डायट में काउंसलिंग

कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) भर्ती, मैट्रिक, इंटरमीडिएट और स्नातकों के 1355 पदों पर भर्ती, 20 मार्च 2020 तक करें आवेदन

29334 शिक्षकों की भर्ती ; 82 अंक टीईटी उत्तीर्ण आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों को जिलों में बचे हुए रिक्त पदों के सापेक्ष काउंसिलिंग में शामिल करने का निर्णय

रक्षा मंत्रालय में फायरमैन और ट्रेड्स के  38 पदों हेतु आवेदन पत्र आमंत्रित

NHM में 12 हजार पदों पर भर्ती : अक्तूबर में आएगा विज्ञापन